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" Tum sirf meri ho"

आर्या काफी घबराई हुई लग रही थी, वह खुद को शांत नहीं कर पा रही थी। जब भी वह अपनी आँखें बंद करती, उसे हमेशा एहसास होता कि कोई उसे छू रहा है। इसलिए आर्या अब सो नहीं पाती।

 आर्या गार्डन में जाकर झूले पर बैठ जाती है और चाँद को देखने लगती है। आर्या के चेहरे पर इस वक़्त डर साफ नजर आ रहा था। 

आर्या झूले पर आराम से बैठते हुए चाँद को देखते हुए बोली, "मॉम, क्या आप मुझे देख रही हैं? काश आप मेरे पास होतीं! आपको पता है, मैं आपको रोज याद करती हूँ। डैडी भी आपको रोज याद करते हैं। जब भी मैं दूसरे बच्चों की मॉम को देखती हूँ, मुझे हमेशा आपकी याद आती है। आप मुझे छोड़कर चली गई हैं।" इतना कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।

 आर्या के दिल में बहुत दर्द हो रहा था, उसे घुटन सी महसूस हो रही थी। वह अपने दाहिने हाथ से अपने सीने को रगड़ती है।

 कुछ देर तक लंबी-लंबी साँस लेने के बाद आर्या को काफी अच्छा महसूस हो रहा था। उसके आँखों से आँसू बहकर उसके गालों पर आ चुके थे।

 आर्या चाँद को देखते हुए आगे बोली, "अगर आज आप ज़िंदा होतीं तो मैं भी बाकी बच्चों की तरह बहुत खुश होती। ऐसा नहीं है कि डैडी मेरा ख्याल नहीं रखते हैं, मगर वह हमेशा काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं। उनके पास कभी-कभी मुझसे बात करने का भी टाइम नहीं रहता है। मुझे बहुत अकेला फील होता है, मॉम। मैं बहुत अकेली हूँ। आप मुझे क्यों छोड़कर चली गईं? मुझे आपकी बहुत याद आ रही है।" इतना कहते ही वह रोने लगती है। आर्या के रोने की आवाज ज्यादा तेज नहीं थी इसलिए गेट के पास खड़े गार्ड्स ने उसकी आवाज नहीं सुनी।

आर्या काफी देर तक रोती है। उसका चेहरा लाल हो चुका था। अचानक सरसराहट की आवाज आती है जिस कारण आर्या घबराकर अपनी मुट्ठी बंद कर लेती है और आसपास देखने लगती है।

 मगर अंधेरे के अलावा आसपास कुछ भी नहीं था। आर्या डरते हुए खड़ी हो गई। तभी उसे महसूस हुआ कोई उसके पीछे खड़ा है। आर्या का शरीर काँपने लगता है। आर्या को अपनी गर्दन पर किसी की गर्म साँस महसूस हो रही थी। 

आर्या डरते हुए अपने होठों को आपस में दबा लेती है। आर्या हिम्मत करके एकदम से पीछे पलटी है मगर उसके पीछे कोई नहीं था। यह देखकर आर्या के चेहरे पर हैरानी के भाव आ जाते हैं। 

आर्या आसपास देखते हुए बोली, "क्या यहाँ पर कोई है? क्या यहाँ कोई है? अगर है तो सामने आओ।" मगर आर्या को अपने आसपास कोई भी नजर नहीं आया।

 तभी उसे पेड़ के पास एक परछाई नजर आई और वह धीरे-धीरे डरते हुए उस पेड़ के पास पहुँच जाती है। आर्या अपनी घबराई हुई आवाज में बोली, "कौन? कौन है वहाँ पर? सामने... सामने आओ!"

 मगर कोई भी आर्या के सामने नहीं आता है। आर्या अपना फोन निकालती है और टॉर्च जलाकर पेड़ की तरफ देखने लगी मगर उसे अब वहाँ पर कोई नजर नहीं आ रहा था। 

आर्या के माथे से पसीना निकलने लगा था। वह जल्दी से घर के अंदर भाग जाती है। आज आर्या को इस घर से भी बहुत डर लग रहा था। पूरे घर में अजीब सी शांति थी। 

आसपास कोई भी नजर नहीं आ रहा था। आर्या का दिल जोर से धड़क रहा था। उसने घबराते हुए खुद से कहा, "आर्या, शांत हो जाओ। यहाँ आस-पास कोई नहीं है। तुम बस बेवजह डर रही हो।" इतना कहते हुए आर्या अपने रूम में जाने लगती है।

 आर्या ने पहली सीढ़ी पर अपना पैर रखा था कि अचानक लिविंग रूम में रखा फ्लावर वास जमीन पर टूट गया। आर्या पलट कर इस जमीन पर देखती है।

आर्या लिविंग रूम में आकर चारों तरफ देखते हुए बोली, "अंकल! अंकल! क्या आप यहाँ पर हैं? अंकल?" फिर आर्या जल्दी से घर से बाहर निकल जाती है। उसने देखा आसपास जो गार्ड हमेशा मौजूद रहते थे वह भी यहाँ नहीं हैं।

तभी आर्या को फिर से महसूस हुआ कोई उसके पीछे खड़ा है। आर्या के रोंगटे खड़े हो गए थे। आर्या पलटती उससे पहले ही 

उसके कानों में एक भारी मगर डरावनी आवाज पड़ी, "तुम सिर्फ मेरी हो। सिर्फ मेरी। तुम्हें मेरे पास आना होगा, प्यार से या जबरदस्ती से।" 

आर्या अब पलटने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। उसकी आँखों में डर से सन्नाटा पसरा रहा था। 

तभी उसे महसूस हुआ किसी ने उसकी कमर पर हाथ रखा और उसके कान के पास आकर उसके कान पर बाइट करते हुए बोला, "तुम सिर्फ मेरी हो। तुम मुझसे भाग नहीं सकती हो। अगर तुमने मुझसे भागने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा। तुम मेरी ज़रूरत हो, तुम मेरी आदत हो।" इतना कहते ही उस इंसान की डरावनी हँसी आर्या के कानों में गूंजने लगी। आर्या का सर भारी होने लगा।

आर्या की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा था। अगले ही पल आर्या खुद को संभाल नहीं पाई और बेहोश होकर जमीन पर गिर गई।

अगले दिन दोपहर 1:00 बजे…

आर्या की आँखें धीरे-धीरे खुलती हैं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो उसे अपने आसपास कई सारे लोग नजर आए। 

आर्या को पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था मगर जब उसके डैडी उसे नजर आए तो आर्या की आँखों में आँसू आ गए। 

अगले ही पल आर्या रघुवीर जी के गले लगकर रोने लगी। धीरे-धीरे आर्या को कल रात की सारी बातें याद आने लगी थीं, जिस कारण अब डर के मारे उसका शरीर काँप रहा था। 

रघुवीर जी घबराते हुए आर्या को शांत करके बोले, "आर्या, शांत हो जाओ। डैडी यहाँ पर हैं। डरने की जरूरत नहीं है। डैडी को बताओ तुम्हें क्या हुआ है? क्या किसी ने तुम्हें परेशान करने की हिम्मत की है?" इतना कहते ही रघुवीर जी की आँखों में गुस्सा साफ नजर आने लगता है।

 मगर आर्या को इस हालत में देखकर उन्हें बहुत ही ज्यादा तकलीफ हो रही थी। आर्या 15 मिनट तक रोती रही। 

जब वह शांत हुई तो उसने अपने आँसू पोंछे और रघुवीर जी को देखते हुए बोली, "डैडी, आप... आप दोबारा मुझे अकेला छोड़कर मत जाइएगा। मुझे बहुत डर लगता है।" इतना कहते ही वह फिर से रोने लगती है।

रघुवीर जी उसके आँसू पोंछते हैं और प्यार से बोले, "चिंता मत करो, मैं यहाँ पर हूँ। अब मुझे यह बताओ तुम्हें क्या हुआ है?"

 आर्या कल रात के बारे में सोचकर फिर से डर जाती है। उसने रघुवीर जी को गले लगाते हुए डर कर कहा, "डैडी, कल... कल कोई यहाँ पर था। वह इंसान बहुत डरावना है। डैडी, कल मैं बहुत डर गई थी। उसने कहा कि वह मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। वह पता नहीं कौन था डैडी, मुझे डर लग रहा है।" 

रघुवीर जी का चेहरा डार्क हो गया। उन्होंने दरवाजे के पास खड़े गार्ड को देखते हुए गुस्से में कहा, "आर्या की सेफ्टी के लिए कल जो भी गार्ड्स एरिया में मौजूद थे, उन सबको खत्म कर दो। उन सबकी लापरवाही के कारण मेरी बेटी की यह हालत हो गई है। और पता करो किसकी इतनी हिम्मत हो गई जिसने मेरी बेटी को डराने की हिम्मत की है।"

 फिर वह आर्या को शांत करते हुए प्यार से बोले, "अच्छे बच्चे इतना रोते नहीं हैं। चलो जल्दी से रेडी हो जाओ। मैं तुम्हारे लिए अपने हाथों से खाना बनाऊँगा। ठीक है? अब और डरो मत।"

आर्या अपने सर को हिला देती है। अपने डैडी के पास होने के कारण आर्या को अब सेफ महसूस हो रहा था। आर्या बिस्तर से उतर जाती है और वॉशरूम में चली जाती है। 

रघुवीर जी जब हॉल में आते हैं तो वहाँ पर एक डॉक्टर पहले से ही मौजूद था। इसके साथ ही साथ जो गार्ड्स कल एरिया में मौजूद थे उनकी लाश भी पड़ी थी।

 रघुवीर जी गुस्से से बोले, "इन सबकी लाश को गटर में फेंक दो और अब जाकर उस इंसान के बारे में पता करो जिसने मेरी बेटी को डराया है।" इतना कहते ही रघुवीर जी आर्या के लिए कुछ बनाने चले गए।

आर्या तैयार होकर नीचे जाती है। उसने पिंक कलर की मिनी स्कर्ट और वाइट कलर का टॉप पहना था। उसके बाल पोनी में बंधे थे। आर्या के चेहरे पर रोज स्माइल होती थी मगर आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

आर्या रघुवीर जी के पास जाने वाली थी कि रघुवीर जी प्यार से बोले, "गार्डन में जाकर बैठो, मैं वहीं पर ब्रेकफास्ट लेकर आता हूँ।"

आर्या कोई जवाब नहीं देती है। वह चुपचाप गार्डन में चली जाती है। उसके इस तरह चुप रहने से रघुवीर जी के दिल में दर्द उठा। आर्या गार्डन में जाकर चुपचाप बैठ गई थी। 

अचानक उसे महसूस हुआ कोई उसे घूर रहा है। आर्या अपनी मुट्ठी कसकर बंद कर लेती है। वह इस बार और भी ज्यादा डर गई थी।

गार्डन में मौजूद पेड़ के पीछे एक परछाई छुपी हुई थी जो लगातार आर्या को देखते हुए मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कुराहट बहुत ही डरावनी थी।

Continue……..

कौन है जो आर्या को डरा रहा? जानने के लिए बने रहे।

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